भारत के सभी वकील काले कोट पहने रहते है क्या आप जानते है की सभी वकील काला कोर्ट ही क्यों पहनते है आईये जानते है इसके बारे, इस ड्रेस कोड की शुरुआत आज से लगभग 7 सौ वर्ष पूर्व 1327 में किंग एड्वर्ड तृतीय द्वारा की गई। उन्होंने अपने रॉयल कोर्ट के न्यायधीशों और वकीलों के लिए ड्रेस कोड को आधार बनाकर विशेष वेशभूषा बनवाई गई। जिसके तहत न्याय कक्ष में जाते समय न्यायधीशो को सर पर एक विशेष प्रकार का विग पहनना पड़ता था। यह व्यवस्था लम्बे समय तक बनी रही आज़ादी के पूर्व तक भारत में सभी न्यायाधीश इसे पहनते थे, ऐसा हमने कई फिल्मों में भी देखा है जो आज़ादी से पूर्व के कथानक पर आधारित हैं। उस समय समस्त वकीलों को चार श्रेणियों में बांटा गया,जो इस प्रकार से हैं – स्टूडेंट, प्लीडर, बेंचर और बेरिस्टर।

उस समय वकीलों द्वारा सुनहरे लाल वस्त्र और भूरे रंग के वस्त्रों से बने गाउन पहनते थे और ये सभी तरह के लोग अपने अपने अंदाज़ में न्यायधीश का स्वागत-सत्कार किया करते थे। सन 1600 में इनके ड्रेस कोड में परिवर्तन आया और 1637 में प्रिवी कौंसिल के द्वारा यह प्रस्ताव लाया गया कि वकीलों को भी जनता के अनुरूप ही ड्रेस धारण करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि विग और गाउन जज और वकीलों को अन्य से अलग दर्शाती थी।

सन 1694 में क्वीन मेरी के चेचक रोग से ग्रस्त होने से मौत हो गई। उस वक़्त उनके पति और तत्कालीन महाराज किंग विलियंस ने सभी जजों और वकीलों को सार्वजनिक तौर पर शोक प्रकट करने के लिए काले रंग के गाउन पहन कर आने का फरमान जारी किया। इस आदेश को कभी भी बदला या रद्द नहीं किया गया और तब से आज तक यह रिवाज चल रहा है। वकीलों को भी यह ड्रेस कोड बहुत अच्छा लगा और उन्होंने इसे अपनी पहचान बना ली।

बाद में 1961 में आये अधिनियम द्वारा कोर्ट में काला कोट, सफ़ेद रिबन के साथ पहनना अनिवार्य कर दिया। आम तौर पर ये मत है कि यह ड्रेस कोड से वकीलों में अनुशासन की भावना और न्याय के प्रति दिल में दृढ विश्वास जगाता है। साथ ही यह ड्रेस कोड इस पेशे से जुड़े पेशेवरों को अन्य से अलग, विशिष्ट और सम्मान जनक पहचान दिलाता है। साथ ही इसकी एक वजह शायद यह भी हो सकती है कि काले रंग पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता और शायद न्याय भी अपनी पारदर्शिता को इस काले कोट से परिभाषित करता है

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