केरल में त्रिशुर को सांस्कृतिक राजधानी का दर्जा प्राप्त है। और यहां है प्रसिद्ध ‘वड़क्नाथन मंदिर’, यह मंदिर ऐतिहासिक धार्मिक धरोहर में शामिल है। मंदिर को कोच्चि रियासत के भूतपूर्व महाराजा राम वर्मा ने 9वी शताब्दी में बनवाया था। उस सयम त्रिशुर उनके राज्य की राजधानी हुआ करती थी।
प्राचीन साहित्यग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि यह वही मंदिर है जहां द्वैत वेदांत के प्रणेता आदि शंकराचार्य के माता-पिता ने संतान प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किया था। यहां आदि शंकराचार्य का मंदिर और समाधि दोनों ही हैं। आदि शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे है।
वड़क्नाथन मंदिर में भगवान शिव विराजे हैं। शिव के अलावा श्रीराम की मूर्ति भी स्थापित है। नगर के बीचों-बीच लगभग 9 एकड में फैला ऊंचे परकोटे वाले इस विशाल मंदिर में भगवान शिव को ही वड़क्नाथन कहते हैं।
मंदिर संगमरमर के पत्थर से बनाया गया है। जिसमें केरल के स्थापत्य को बखूभी देखा जा सकता है। मान्यता है कि वड़क्नाथन का अर्थ उत्तर के नाथ से है जो जिसे कुछ विद्वान ‘केदारनाथ’ भी कहते हैं।
वड़क्नाथन के इस मंदिर के चारों तरफ 60 एकड में फैला घना सागौन का जंगल था जिसे शक्तन तम्बुरान ने कटवा कर लगभग 3 किलोमीटर गोल सडक का निर्माण करवाया था। यहीं वर्तमान में स्वराज राउंड है।
कहते हैं एक बार किसी विलिचपाड (बैगा) ने यह कह कर प्रतिरोध किया कि, ‘ये जंगल तो शिवजी की जटाएं हैं’, तब तत्कालीनराजा ने अपने ही हाथ से उस बैगे का सर काट दिया था। इसी मंदिर के बाहर अप्रैल/मई में पूरम नाम का विशाल उत्सव मनाया जाता है। जिसे देखने देश-दुनिया के लोग आते हैं।
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