स्वतंत्रता दिवस विशेष : भारत -पाकिस्तान विभाजन और आजादी की कहानी से जुड़ी कुछ अहम बाते

भारत -पाकिस्तान विभाजन और आजादी की कहानी से जुड़ी कुछ अहम बाते {1885-1947}

ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में “फूट डालो और राज्य करो” की नीति को मानते हुए शासन किया | ब्रिटिश शासकों ने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी सारी नीतियाँ हिन्दुओं और मुसलमानों के प्रति भेदभाव करती थीं ।

20वीं सदी आते-आते मुसलमान, हिन्दुओं के बहुमत से बहुत ज्यादा डरने लगे और हिन्दुओं को यह लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार, मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगी हुयी हैं, इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों ओर के संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।

आपसी रंजिश और साम्प्रदायिक फुट के कारण देश दो हिस्सों में बँट गया,’भारत और पाकिस्तान| आज हम विभाजन के इतिहास से जुड़ी कुछ ऐसी ही अहम तारीख़ों की बात करेंगे जहाँ से भारत पाकिस्तान के विभाजन की शुरुआत हुयी ,जिन्हें जानना प्रत्येक भारतीय के लिए बेहद जरुरी है ………

दिसंबर 1885 को इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहली बैठक मुंबई में हुई थी | ब्रिटिश राज में सर्वप्रथम कोंग्रेस आजादी पर ज्यादा ध्यान ना देकर इस बात पर ध्यान दे रही थी की किसी तरह सभी भारतीय लोगों की दशा में सुधार किया जाए , परन्तु जब 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ इसके बाद, कांग्रेस ने भारत के राजनीतिक सुधारो की मांग में तेजी कर दी और आख़िरकार पूर्ण स्वराज के लिए कोशिश की गयी |

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30 दिसम्बर, 1906 ई. को ढाका में ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना  सलीमुल्ला ख़ाँ के नेतृत्व में हुयी | सलीमुल्ला ख़ाँ इस ‘मुस्लिम लीग’ के संस्थापक व अध्यक्ष भी थे ।मुस्लिम लीग का प्रमुख उद्देश्य ‘भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति भक्ति भावना उत्पत्र करना और भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारो की रक्षा करना था । मुस्लिम लीग का मूल नाम ‘अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’रखा गया था। यह एक राजनीतिक समूह था, जिसने ब्रिटिश भारत के विभाजन से निर्मित एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग के लिए आन्दोलन चलाया।

मुस्लिम नेताओं, विशेषकर मुहम्मद अली जिन्ना ने इस बात का मुस्लिम जनता में भय जताया कि भारत के स्वतंत्र होने पर भारत में सिर्फ़ हिन्दुओं का ही वर्चस्व रहेगा तथा मुस्लिमो पर अत्याचार कीया जायेगा । इसीलिए उन्होंने मुस्लिमों के लिए एक सम्पूर्ण अलग राष्ट्र की मांग को बार-बार दुहराया।

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महात्मा गाँधी और मोहम्मद अली जिन्ना के बिच  वार्ता 

महात्मा गाँधी और मोहम्मद अली जिन्ना ने फ़रवरी 1938 को देश में चल रहे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच जारी तनाव को समाप्त करने के लिए वार्ता शुरु की परन्तु ये बातचीत जुलाई में नाकाम हो गई |

दिसंबर में मुस्लिम लीग ने “मुसलमानों के उत्पीड़न” की जाँच के लिए एक नई समिति बनाई | पाकिस्तान बनने की कड़ी में एक मुख्य काम 23 मार्च 1940 को हुआ | इस दिन मुस्लिम लीग ने लाहौर में एक प्रस्ताव रखा जिसे ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ के नाम से भी जाना गया | इसके तहत एक पूरी तरह आज़ाद मुस्लिम देश बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया

तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने अगस्त प्रस्ताव की घोषणा 8 अगस्त, 1940 ई. को भारत में की थी। लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा घोषित इन प्रस्तावों के द्वारा भारत में रहने वाले अल्प-संख्यकों को अधिकांशत: वे अधिकार प्राप्त हुए, जिनकी उन्हें अपेक्षा भी नहीं थी। अगस्त प्रस्ताव के अंतर्गत ही सर्वप्रथम यह बात भी कही गई कि भारतीयों के लिए स्वयं का संविधान होना चाहिए। मुस्लिम लीग ने अगस्त प्रस्ताव घोषणा के उस भाग का, जिसमें यह था कि “भावी संविधान उनकी अनुमति से ही बनेगा”, का स्वागत किया, परन्तु कांग्रेस ने ‘अगस्त प्रस्ताव’ को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया। ‘अगस्त प्रस्ताव’ पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत के राज्य सचिव एल.एस. एमरी ने कहा कि “आज मुख्य झगड़ा ब्रिटिश सरकार और स्वतंत्रता मांगने वाले तत्वों में नहीं, अपितु भारत के राष्ट्रीय जीवन में भिन्न-भिन्न तत्त्वों में है।’ बाद में मुस्लिम लीग ने भी इस अगस्त प्रस्ताव घोषणा को ख़ारिज कर दिया और 17 अक्तूबर को कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ किया |

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तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने राजनीतिक और कानूनी गतिरोध को हटाने की कोशिश की | इसके लिए 11 मार्च 1942 को ब्रिटिश संसद में यह घोषणा की गई कि इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाजवादी नेता सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स को जल्द ही नए सुझावों के साथ भारत भेजा जाएगा जो राजनीतिक सुधारों के लिए वे भारतीय नेताओं से बातचीत करेंगे |

23 मार्च 1942 को सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स भारत में दिल्ली आया |उसने दिल्ली पहुँचकर विभिन्न नेताओं से मुलाकात की ओर उसके पश्चात् 30 मार्च, 1942 ई. को क्रिप्स ने अपनी एक नयी योजना प्रस्तुत की जिसको ‘क्रिप्स प्रस्ताव ‘ के नाम से जाना गया |इन क्रिप्स प्रस्तावों में भारत के विभाजन की रूपरेखा के स्पष्ट संकेत मिल रहे थे इसलिए कांग्रेस ने अंतरिम प्रबंध, रक्षा से सम्बधित योजना एवं प्रान्तों के आत्मनिर्णय के अधिकार को पूर्ण अस्वीकार कर दिया। वही दूसरी ओर पाकिस्तान की स्पष्ट घोषणा न किये जाने एवं संविधान सभा के गठन के कारण क्रिप्स प्रस्ताव को मुस्लिम लीग ने भी अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार इस प्रस्ताव में भारतीय हितों की अनदेखी की गयी थी |

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क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद ‘ कांग्रेस कमेटी’ की बैठक 8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई में की गयी , इसमें यह मुख्य निर्णय लिया गया कि अंग्रेज़ों को किसी भी हाल में भारत छोड़ना ही पड़ेगा। भारत अपनी सुरक्षा स्वयं ही करेगा और साम्राज्यवाद तथा फ़ाँसीवाद के विरुद्ध रहेगा। यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ देते हैं, तो अस्थाई सरकार बनेगी |

भारत छोड़ो आंदोलन

साल 1942 में महात्मा गांधी के नेतृत्‍व में भारत छोड़ो आंदोलन प्रारम्भ हुआ |महात्मा गाँधी और जिन्ना ने सितंबर 1944 में पाकिस्तान की मांग पर लम्बी वार्ता की, जो नाकाम रही| जिन्ना पहले पाकिस्तान की मांग की और आज़ादी की बाद में जबकि गाँधी का कहना यह था कि आज़ादी पहले मिलनी चाहिए | ऐसी आज़ादी जिसमें प्रमुख रूप से हिंदू बहुमत वाली अस्थायी सरकार, मुसलमानों की पहचान सुरक्षित रखने का आश्वासन दे |1946 में मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की योजना से स्वयं को अलग कर दिया और आंदोलन को पूरी तरह छोड़ दिया जिसके बाद पुरे देश में सब तरफ मारकाट शुरू हो गई |

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हिंसा की एक शर्मनाक पहल कलकत्ता 16 अगस्त 1946 को प्रारंभ हुयी |यह ‘सीधी कार्रवाई’ मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग को तत्काल स्वीकार करने के लिए चलाया गया एक हिंसात्म अभियान था। 16 से 18 अगस्त के बीच जब मुस्लिम लीग के उकसाने पर कलकत्ता तथा बंगाल और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में भीषण हिंसात्म दंगे हुए । इन 72 घंटों के भीतर छह हजार से अधिक लोग म्रत्यु को प्राप्त हुए , बीस हजार से अधिक गंभीर घायल हुए और एक लाख से अधिक कलकत्तावासी पूरी तरह बेघर हो गए। हिंसा की यह आग पूर्वी बंगाल के नोआखाली ज़िले और बिहार तक फैल गई |

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1947- विभाजन का साल

मुस्लिम लीग ने 29 जनवरी को संविधान सभा को भंग करने की मांग की, फ़रवरी में पंजाब में भी सांप्रदायिक हिंसा शुरू हो गई | ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन जून 1948 तक स्वयं भारत छोड़ देगा परन्तु विभाजन भी होगा और लॉर्ड माउंटबेटन ,वायसरॉय का पद संभालेंगे| 24 मार्च 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने वायसरॉय और गवर्नर जनरल के पद की शपथ ली |15 अप्रैल 1947 को गांधी और जिन्ना ने मिलकर आम लोगों से हिंसा और अव्यवस्था से पूरी तरह दूर रहने की मांग की | 2 जून 1947 को माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं से विभाजन की योजना पर बात की और 3 जून 1947 को नेहरू, जिन्ना और सिख समुदाय के प्रतिनिधि बलदेव सिंह ने ऑल इंडिया रेडियो के प्रसारण में इस योजना के बारे में सभी को जानकारी दी |

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आख़िरकार 14 अगस्त को एक नया देश पाकिस्तान बना दिया गया और पाकिस्तान ने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया | 14 अगस्त की रात बारह बजे ब्रिटेन और भारत के बीच सत्ता का स्थांनातरण हुआ तत्पश्चात 15 अगस्त को भारत ने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया |

देश की राजधानी दिल्ली में स्वतंत्रता का उत्सव 15 अगस्त-1947 को मनाया जा रहा था,परन्तु उनमें महात्मा गाँधी शामिल नहीं थे । वे उस समय कलकत्ता में थे परन्तु वहाँ भी उन्होंने किसी भी उत्सव में भाग नही लिया, क्युकी राष्ट्र का विभाजन उनको अन्दर से खाया जा रहा था उनका सपना था की पाकिस्तान ,भारत से अलग ना हो | गाँधी जी ने हिन्दू, सिक्ख और मुस्लिमों को कहा कि जो हुआ उसे भुलाकर अपनी पीड़ा पर ध्यान देने के बजाय एक-दूसरे के साथ भाईचारे से रहे |

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उस महीने विभाजन के बाद दोनों देशों में विशाल जन स्थानांतरण हुआ | पाकिस्तान ने लगभग सभी हिन्दुओ तथा सिखों को जबरन देश से निकल दिया परन्तु भारत में गांधीजी ने कांग्रेस पर दबाव डाला और सुनिश्चित किया कि जो भी मुसलमान चाहें तो भारत में रह सकते है ।

1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए। लगभग सवा करोड़ लोग अपना घरबार छोड़ देश बदलने को मजबूर हो गए | लगभग 5 से 10 लाख लोग हिंसा के कारण मारे गए | हज़ारों महिलाओं को अगवा कर लिया गया और उनके साथ बलात्कार किया गया | साम्प्रदायिक मतभेद के कारण ऐसा कत्लेआम हुआ की सभी एक दुसरे के खून के प्यासे हो गए | उस समय के आपसी मदभेद के घाव इतने गहरे हुए है की कुछ तो आज तक नही भर पाए है |

साभार -BBC