बाइक या कार का इस्तेमाल कर रहा एक इंसान ही जानता है कि पंचर लगावाने में कितने झंझट और दिक्कतें होते हैं. ऐसी ही दिक्कतों से गुज़र रहे थे बेंगलुरु के बेन्डिक्ट जेबाकुमार।नौ दिनों में जब इन्हें पंचर पर 845 रुपये खर्च करने पड़े तो ये परेशान हो गये और सड़क से कीलें उठा-उठा कर अपने घर में रखने लगे। अब तक इन्होंने 13 किलो कीलें इकट्ठी कर ली हैं।

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जेबाकुमार अपनी समस्या के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि “जब एक ही रास्ते पर एक साल में 13 किलो कीलें मिल सकती हैं तो पता चलता है कि कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है”।
जेबाकुमार अपने घर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर जाते-जाते कीलें उठाते हैं. इसके लिए वो एक चुंबक लगी छड़ का प्रयोग करते हैं। जेबाकुमार का कहना है कि “सुबह मैं कीलें उठा कर ले जाता हूं पर शाम को आता हूं तो भी बहुत सारी कीलें सड़क पर मिलती हैं”. उन्हें लगता है कि कुछ लोग ये काम पैसा कमाने के लिए करते हैं. जब वो कीलें इकट्ठी करने लगे तो उन्होंने जाना कि जहां से ज़्यादा कीलें मिलती हैं वहां से लगभग 500 मीटर की दूरी पर अस्थायी पंचर की दुकान मौजूद होती है।

पहले फेंकते थे, अब जमा करते हैं-
साल 2012 से 2014 के दौरान अपने द्वारा इकट्ठी की गई कीलों को जेबाकुमार फेंक देते थे लेकिन अब उन्होंने कीलें जमा करनी शुरू कर दी. उन्होंने इस हरकत के बारे में मीडिया से ले कर प्रशासन तक सबको ख़बर की, कुछ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया लेकिन कीलें आज भी उतनी ही मिलती हैं। इसके अलावा फेसबुक पर एक पेज भी चलाया और लोगों को जागरुक किया. लेकिन यहां गौर करें कि ये सिर्फ़ 20 किलोमीटर के बीच का हाल है, तो बाकी इलाकों के हाल क्या होंगे?

कीलों को इकट्ठा करने वाले जेबाकुमार बदलाव के प्रतीक हैं. जो लोग सोचते हैं कि अकेला इंसान कुछ नहीं कर सकता उनके लिए ये सबक है।
Source: bbc