नवरात्री के दिनों से गरबा निकाल दिया जाये तो नवरात्रि का उत्सव बहुत सुना सुना लगेगा, हम सब नवरात्रि के दिनों में गरबा खेलते है और इस गरबा में क्या लड़के और क्या लड़कियां, क्या बच्चे और क्या बूढे हर उम्र के लोग गरबा खेलने में पीछे नही रहते है । बेहद ही खूबसूरत और पारंपरिक अंदाज में सजे लोग इस नृत्य को बेहद ही खूबसूरती से अंजाम देते हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर गरबा नवरात्रि के ही वक्त क्यों होता है, आखिर क्या है नवरात्रि और गरबा के बीच का सम्बन्ध ………

घट स्थापना –
गरबा को लोग पवित्र परंपरा से जोड़ते हैं और ऐसी मान्यता है कि यह नृत्य मां दुर्गा को काफी पसंद हैं इसलिए नवरात्रि के दिनों में इस नृत्य के जरिये मां को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। इसलिए घट स्थापना होने के बाद इस नृत्य का आरंभ होता है। दीपगर्भ ही गरबा कहलाता है इसलिए आपको हर डांडिया नाईट में काफी सजे हुए घट दिखायी देते हैं। जिस पर दिया जलाकर इस नृत्य का आरंभ किया जाता है।यह घट दीपगर्भ कहलाता है और दीपगर्भ ही गरबा कहलाता है।

गरबा सौभाग्य का प्रतीक गुजरात में नवरात्रों के दिनों में लड़कियां कच्चे मिट्टी या दीपगर्भ के सछिद्र घड़े को फूलपत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं। गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। पहली रात्रि को गरबा की स्थापना नवरात्रों की पहली रात्रि को गरबा की स्थापना होती है। फिर उसमें चार ज्योतियां प्रज्वलित की जाती हें। फिर उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं। देवी गीत गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा, मंजीरा आदि का ताल देने के लिए प्रयोग होता हैं और लोग देवी गीत गाते हैं।
