नवरात्र स्पेशल: इस देवी के आगे टेके थे मुगल बादशाह ने घुटने
राजस्थान की अरावली पहाड़ियों में स्थित शक्तिपीठ जीण माता के उद्भव और चमत्कार से जुड़ी अनेकों मान्यताएं और किवदंतियां आज भी जनमानस में विश्वास और भक्ति का प्रयाय बनी हुई हैं. इन्हीं में से एक मान्यता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब को भी माता के चमत्कार के आगे घुटने टेकने पड़े थे. नवरात्र स्पेशल में आज हम बात कर रहे हैं इसी शक्तिपीठ से जुड़ी खास मान्यताओं के बारें में-
सीकर से लगभग 15 कि.मी. दूर स्थिति यह मंदिर जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर पश्चिम और दक्षिण के मध्य खोस नामक गांव के पास स्थित है. लोक मान्यता का इसके बारे में कहना है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने जीण माता के इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया लेकिन माता के ऐसा चमत्कार किया कि औरंगजेब की हजारों की सेना तक मंदिर को तोड़ना तो दूर हाथ तक नहीं लगा सकी.
दरअसल लोक मान्यता के अनुसार मुगलों के बादशाह औरंगजेब ने जीण माता और भैरो के मंदिर को तोडऩे के लिए हजारों सौनिकों की सेना भेजी. इस बारे में जब लोगों को पता चला तो वह बादशाह के इस व्यवहार से वहुत दुखी होकर और जीण माता से प्रार्थना की.
सेना पर मुधमक्खियों ने बोला था हमला
जीण माता ने अपना चमत्कार दिखाया और वहां पर मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर धावा बोल दिया. मधुमक्खियों के झुंड ने जैसे ही मुगल सेना पर धावा बोला सभी सैनिक वहां से भाग गए, वहीं दूसरी तरफ औरंगजेब भी गंभीर रुप से बीमार हो गया. और जब औरंगजेब ने माता के मंदिर में आकर अपनी गलती की मांफी मांगी एवं माता को वचन दिया कि वह हर महीने सवा मण(50 किलोग्राम) अखंड तेल दीप के लिए भेंट करेगा.जिसके बाद औरंगजेब की तबियत में सुधार होने लगा. और औरंगजेब ने पूरे जीवन काल भार तक रोजाना यहां तेल का दीप जलाया.
भाभी से लगाई थी शर्त
ऐसा कहा जाता है कि जीण माता का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ था. और वह अपने भाई हर्ष से बुहत प्रेम करती थी. एक दिन माता जीण और भाभी(हर्ष की पत्नी) के साथ तालाब से पानी लेने गई. जल लेते समय भाभी और ननद में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि हर्ष किसे ज्यादा प्यार करता है. और निश्चय हुआ कि हर्ष पानी का मटका जिसके सिर से पहले उतारेगा वह उससे ही अधिक प्रेम करता होगा.
भाई से नाराज होकर छोड़ा था घर
भाभी और ननद दोनों पानी लेकर घर पहुंची लेकिन शर्त से अंजान हर्ष ने पहले अपनी पत्नी का मटका नीचे उतारा.यह देखकर जीण माता नाराज हो गई. और नाराज होकर वह आरावली के काजल शिखर पर पहुंच कर तपस्या करने लगी. वहीं दूसरी ओर इस शर्त के बारे में जब हर्ष को पता चला तो वह अपनी बहन की मनाने के लिए काजल शिखर पर पहुंचा और अपनी बहन को घर चलने के लिए कहा लेकिन जीण माता ने घर जाने से इंकार कर दिया. जिससे आहत हो कर हर्ष भी पहाड़ी पर ही भैरों की तपस्या करने लगा.और भैरों पद को प्राप्त हुआ.
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