छूने से हिलने लगती है चट्टान, क्या है रहस्य ?
अठौंदना गांव के पास पहाड़ी पर एक ऐसी चट्टान स्थित है, जो महज हाथ लगाने पर भी हिलने लगती है। हैरत की बात यह है कि इस चट्टान का एक सिरा खाई की ओर लटका है, लेकिन तमाम झंझावातों के बावजूद यह चट्टान अपनी जगह पर स्थिर है। स्थानीय लोग जहां इस चट्टान को ईश्वरीय शक्ति मानते हैं वहीं पुरातत्व विषेशज्ञों के लिए यह किसी अजूबे से कम नहीं है।
दुनिया भर में तमाम तरह की पहाड़ी श्रृंखलाएं लोगों को पर्यटन के लिए आकर्षित करती रही हैं। बुन्देलखण्ड की पहाड़ी श्रृंखलाओं पर भी तमाम तरह के अध्ययन और शोध होते रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच अठौंदना गांव के पास पहाड़ी के ऊपर स्थित एक चट्टान देखने वालों को बेहद प्रभावित कर रही है।
आंधी-तूफान आने पर नहीं हिलती ये चट्टान
जमीन से लगभग 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस चट्टान की खासियत यह है कि इसका एक सिरा खाई की ओर लटका हुआ है। इसे आसानी से छूकर हिलाया जा सकता है, लेकिन तमाम आंधी-तूफानों और प्राकृतिक झंझावातों के बावजूद यह चट्टान अपनी जगह पर स्थित है।
मनोकामना होती है पूरी
स्थानीय निवासी बताते हैं कि यह पत्थर सदियों पुराना है। यदि मन में कोई मनोकामना मानकर इसे हिलाया जाए और यह हिल जाए तो हिलाने वाले की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि यह चट्टान बहुत पुरानी है। इस पर मंदिर है जहां लोग बड़ी संख्या में दर्शन करने आ रहे हैं। वहीं अठौंदना गांव जनपद मुख्यालय से चालीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। स्थानीय लोग इस पत्थर को दैवीय चमत्कार मानकर इसकी आराधना भी करते हैं। इस चट्टान के पास ही यहां देवी-देवताओं की प्रतिमा रखकर इस स्थान की स्थानीय लोग पूजा अर्चना करते हैं। पुरातत्व के जानकार इस हिलते चट्टान को अजूबा मानते हैं।
पुरातत्व विभाग के लिए ये चट्टान है अजूबा
क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. सुरेश दुबे बताते हैं कि छोटे आधार पर बड़े चट्टानों को टिके हुए तो आमतौर पर देखा जाता है, लेकिन ऐसा हिलता पत्थर उन्हें देश में अब तक कहीं भी नहीं दिखा है। पुरातत्व विभाग के अधिकारी उम्मीद जताते हैं कि इस हिलते चट्टान के आसपास एक पर्यटन स्थल विकसित किया जा सकता है।
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