संजीवनी का द्रोण पर्वत लेकर जा रहे हनुमान को भाटकोट यानी भरतकोट से रघुवंशी राजा भरत ने तीर मार कर उतारा था। वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ रामायण में इस क्षेत्र को कारुपथ नाम दिया है। इतिहासकार भी इसकी पुष्टि करते हैं। पौराणिक शास्त्रों के मुताबिक भगवान राम के वनगमन के बाद राजा भरत ने इसी स्थल पर तपस्या की थी।
लोक मान्यता भी है कि जब हनुमान संजीवनी का द्रोण पर्वत लेकर जा रहे थे, भरत ने अपने बाण के प्रहार से यहीं उतारा था। फिर जानकारी हासिल करने के बाद इसी स्थल से लंका भी भेजा। पौराणिक द्वारिका यानी द्वाराहाट व ताकुला ब्लॉक के केंद्र स्थित भाटकोट की यह पहाड़ी समुद्र तल से 9999 फुट ऊंची है। खास बात यह कि अत्रि मुनि, गार्गी व द्रोण ऋषि तथा सुखदेव आदि संतों ने भी यहां वर्षो तप किया था। यहां मौजूद एक से डेढ़ दर्जन त्रिशूल शिव आराधना का प्रमाण भी देते हैं।
चोटी पर प्राकृतिक शिवलिंग भी है, जिसे कालांतर में शिव मंदिर का रूप दे दिया गया। जनश्रुतियों के मुताबिक कत्यूर काल में शासकों ने भरतकोट को तपस्थली के अनुरूप उसके मौलिक स्वरूप में बरकरार रखा। बाद में चंदवंशी राजाओं ने भी इस सांस्कृतिक व धार्मिक धरोहर को संजोए रखा।
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