आपदाएं अमूमन प्राकृतिक होती हैं जिन पर मानव-मात्र का कोई अख़्तियार नहीं होता। जैसे कि अकाल, भूकंप या फ़िर बाढ़। लेकिन कैसा हो जब ये आपदाएं मानव सृजित हों जैसे, युद्ध या फ़िर विभाजन।
ये युद्ध और विभाजन जैसे शब्द ख़ुद में ही इतने वीभत्स और त्रासद होते हैं कि ईश्वर किसी से इनका सामना न कराए। मगर हम जो इतिहास में जाते हैं तो पाते हैं कि पूरा इतिहास ही इन युद्धों और विभाजनों की दास्तां के सिवाय कुछ नहीं। चाहे वो पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के विभाजन हेतु दीवार का निर्माण हो या फ़िर हिन्द-पाक विभाजन, जिसका दंश भारतीय उपमहाद्वीप आज तक झेल रहा है, और हमारी जनरेशन जो कि ख़ुद के इतर देखना ही नहीं चाहती को इस बात का कोई अंदाज़ा भी नहीं है कि तबके हिन्दवासियों ने किन-किन झंझावतों से लड़ कर ख़ुद को खड़ा किया है।
एक नए कारवां की ओर…
आंखों के तारे का छिन जाना…
यहां आंसू ही आंसू हैं…
मां तो बस मां होती है…
असहाय को सहारा…
जिन्हें किस्मत ने किनारे कर दिया…
कुछ हाथ जो फ़िर कभी नहीं उठ सके…
एक अंतहीन सफर पर…
त्रासद…
सन्नाटा…उम्मीद है कि फ़िर भी ज़िन्दा है…
बेबस और बेमौत…
सारी तस्वीरें IndiaTV से साभार ली गई हैं.