मुरैना जिले के मितावली गांव में स्थित चौंसठ योगिनी शिवमंदिर अपनी वास्तुकला और गौरवशाली परंपरा के लिए आसपास के इलाके में तो प्रसिद्ध है, लेकिन मध्यप्रदेश पर्यटन के मानचित्र पर जगह नहीं बना सका है.
स्थानीय लोग इसे ‘चम्बल की संसद’ के नाम से भी जानते हैं. इस मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है. इसका निर्माण तत्कालीन प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने किया था. यह मंदिर गोलाकार है. इसी गोलाई में बने चौंसठ कमरों में एक-एक शिवलिंग स्थापित है. इसके मुख्य परिसर में एक विशाल शिव मंदिर है.
भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक़, इस मंदिर को नौवीं सदी में बनवाया गया था. कभी हर कमरे में भगवान शिव के साथ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं, इसलिए इसे चौंसठ योगिनी शिवमंदिर भी कहा जाता है. देवी की कुछ मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं और कुछ मूर्तियां देश के विभिन्न संग्रहालयों में भेजी गई हैं. यह मंदिर कई तरह से अद्वितीय है.
ऐसा नहीं है कि योगिनी के इस मंदिर में भारतीय ही पूजा करने पहुंचते हैं. आम दिनों में सनातन धर्म और तांत्रिक क्रियाओं पर विश्वास करने वाले विदेशी नागरिक भी यहां पूजा करते दिख जाते हैं. भारत में चार चौंसठ-योगिनी मंदिर हैं, दो ओडिशा में तथा दो मध्य प्रदेश में. मंदिर को एक जमाने में तांत्रिक विश्वविद्यालय कहा जाता था. मंदिर के निर्माण में लाल-भूरे बलुआ पत्थरों का उपयोग किया गया है.
एक ओर जहां संसद की सुरक्षा और सुंदरता पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, वहीं अपनी पुरानी संपदा को बचाने के लिए न तो केंद्र सरकार और ना ही प्रदेश सरकार कोई कदम उठा रही है. ये एक बड़ा सवाल है कि क्या संसद के वास्तु की प्रेरणा लुटियंस को चम्बल के चौंसठ योगिनी शिवमंदिर से मिली थी? यह मंदिर अपने आप में सौदर्य और अभिभूति का नायाब नमूना है.
Source: Mysteryofindia