कुछ कर गुज़रने की चाहत हो, और वहीं कर दिखाने का जज़्बा हो तो कोई राह मुश्किल नहीं होती. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है 18 साल की चांदनी ने. ये बच्ची सिर्फ़ उम्र से छोटी है, लेकिन इसका कारनामा किसी के भी होश उड़ा सकता है.
4 साल की उम्र में बरेली से दिल्ली आया चांदनी का परिवार सड़कों पर तमाशा दिखाता था, लेकिन एक दिन चांदनी के पिता की अचानक मृत्यु हो गई. उस वक़्त वो मात्र 11 साल की थी.
पिता की हुई मौत के बाद चांदनी सड़कों पर कूड़ा उठाने का काम करने लगी. साल 2009 चांदनी के लिए आशा की किरण लेकर आया. वो एक NGO के साथ जुड़ी जिसने चांदनी को एक अखबार में काम करने का प्रस्ताव दिया.
2014 तक चांदनी ने इस अखबार में एक रिपोर्टर की तरह काम किया और आज वो इस अखबार की संपादक के रूप में काम कर रही है, जिसके अंदर करीब 20 बच्चे काम करते हैं.
चांदनी के बालकनामा अखबार ने कई बड़ी खबरों को जनता के सामने पेश किया है. लेकिन ये अखबार और चांदनी उस वक़्त लोगों की नज़र में आई, जब उसने रेलवे पुलिस के एक स्कैंडल का भांडाफोड़ किया, रेलवे पुलिस गरीब बच्चों से एक्सिडेंट या आत्महत्या के बाद मरे हुए लोगों के शरीर को हटाने का काम करवाती थी.
इस अखबरा की सबसे खास बात ये है कि इसमें काम करने वाले सारे बच्चे सड़कों पर काम करते थे, जो आज इस अखबार के लिए रिपोर्टिंग करते हैं.
बालकनामा का ऑफ़िस साउथ दिल्ली में है, जहां हर रोज़ चादनी के साथ उसके रिपोर्टर्स की टीम मिलती है. यहां हर खबर पर चर्चा की जाती है और अगली खबर के लिए योजना बनाई जाती है.
चांदनी अभी 10वीं कक्षा की छात्रा है और वो इस अखबार के साथ अपनी पढ़ाई पर भी बराबर ध्यान देती है.
चांदनी जैसे लोग ही हमें याद दिलाते हैं कि अगर इरादे पक्के हों तो कोई भी मुश्किल आपका रास्ता नहीं रोक सकती. और हालात कभी भी किसी मंजिल को पाने के लिए रूकावट नहीं बन सकते.
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