अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर जयद्रथ काँपने लगा। द्रोणाचार्य ने उसे आश्वासन दिया कि वे ऐसा व्यूह बनाएँगे कि अर्जुन जयद्रथ को न देख सकेगा। वे स्वयं अर्जुन से लड़ते रहेंगे तथा व्यूह के द्वार पर स्वयं रहेंगे। अगले दिन युद्ध शुरू...
द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद दुर्योधन पुन: शोक से आतुर हो उठा। अब द्रोणाचार्य के बाद कर्ण उसकी सेना का कर्णधार हुआ। पाण्डव सेना का आधिपत्य अर्जुन को मिला। कर्ण और अर्जुन में भाँति-भाँति के अस्त्र-शस्त्रों की मार-काट से युक्त महाभयानक...
महाभारत का युद्ध अपने अंत की ओर बढ़ रहा था। कौरवों की ओर से अश्वत्थामा, कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा दुर्योधन के अतिरिक्त कोई भी अन्य महारथी जीवित नहीं बचा। अब दुर्योधन को युद्ध से पूर्व दिये गए विदुर के उपदेश याद आने...
द्रौपदी को जब समाचार मिला कि उसके पाँचों पुत्रों की हत्या अश्वत्थामा ने कर दी है, तब उसने आमरण अनशन कर लिया और कहा कि वह अनशन तभी तोड़ेगी, जब अश्वत्थामा के मस्तक पर सदैव बनी रहने वाली मणि उसे प्राप्त...
धर्मराज युधिष्ठिर के शासनकाल में हस्तिनापुर की प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। कहीं भी किसी प्रकार का शोक व भय आदि नहीं था। कुछ समय बाद श्रीकृष्ण से मिलने के लिये अर्जुन द्वारिकापुरी गये। जब उन्हें गए कई महीने व्यतीत हो...