आज विश्वकर्मा दिवस है और इस मौके पर देशभर में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का आदि शिल्पकार माना जाता है। हर साल 17 सितंबर को उनकी पूजा की जाती है। साधन, औजार, युक्ति व निर्माण के देवता विश्वकर्मा जी के विषय में अनेकों भ्रांतियां हैं बहुत से विद्वान विश्वकर्मा इस नाम को एक उपाधि मानते हैं, क्योंकि संस्कृत साहित्य में भी समकालीन कई विश्वकर्माओं का उल्लेख है कालान्तर में विश्वकर्मा एक उपाधि हो गई थी, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मूल पुरुष या आदि पुरुष हुआ ही न हो, विद्वानों में मत भेद इस पर भी है कि मूल पुरुष विश्वकर्मा कौन से हुए। कुछ एक विद्वान अंगिरा पुत्र सुधन्वा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं तो कुछ भुवन पुत्र भौवन विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं ।

मान्यता है की भगवान विश्वकर्मा ने हमारी इस सृष्टि का निर्माण किया, इसलिए उन्हें सृष्टि का निर्माणकर्ता भी कहा जाता हैं। देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, आभूषण और महलों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया। इंद्र का सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र भी उन्होंने ही बनाया था।

प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थीं, प्राय: सभी विश्वकर्मा जी की ही बनाई मानी जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेतायुग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ और ‘हस्तिनापुर’ आदि जैसे प्रधान स्थान विश्वकर्मा के ही बनाए माने जाते हैं। ‘सुदामापुरी’ भी श्रीकृष्णा के कहने पर विश्वकर्मा जी ने ही तैयार किया था।

मान्यता के अनुसार सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग की वस्तुएं विश्वकर्मा ने ही बनाई थीं। कर्ण का कुंडल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, महादेव का त्रिशूल और यमराज का कालदंड भी उन्हीं की देन हैं। कहते हैं कि पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।