प्रकृति के नज़ारों के आगे मानव की कोई हैसियत नहीं है. मानव ने प्रकृति को सुधारने और उजाड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन प्रकृति अपने आप में संपूर्ण है. उसे किसी मानव रूपी विश्लेषण, अर्थात सहारे की आवश्यकता नहीं है. हालांकि मानव और प्रकृति एक-दूसरे के समकक्ष हैं लेकिन प्रतिरोध भी पैदा हो रहा है. मानव प्रकृति से छेड़छाड़ करता है, जवाब में प्रकृति प्रकोप बरसाती है.
लेकिन ये प्रकृति ही है जो मानव का सांस देती है, उसे आसमान रूपी अपनी गोद में लेती है, ये प्रकृति ही है जिसके नज़ारे कवियों को मज़बूर कर देते हैं लिखने को, यही प्रकृति है जिसकी बदौलत इंसान जीता चला जाता है, यही प्रकृति है जो चेहरों पर नहीं, बल्कि दिलों में मुस्कान पैदा करती है. ये प्रकृति उन सब चीज़ों की जनक है जिसका श्रेय मानव ले लेता है.
इस आर्टिकल में हम प्रकृति के ऐसे नज़ारे दिखायेंगे जो हो सकता है आपको कुछ देखने को, कुछ करने को उद्वेलित कर दें. हालांकि इसमें से कई मानवकृति भी हैं, लेकिन उनमें कहीं न कहीं प्रकृति का योगदान अवश्य रहा है.
1. रेल की पटरी के साथ बसते हैं वो फूल (पेरिस)
2. वो घर दरख़्त से लटका था (फ्लोरिडा)
3. कुछ मछलियां सफेद भी थीं (थाईलैंड)
4. बेल और टॉवर का आलिंगन (क्वींस)
5. खुला है अब जंगल का दरवाज़ा (पॉलेंड)
6. मिट्टी का कमरा (Kolmanskop)
7. दरीचों से झांकता सन्नाटा
8. टूटी सड़क पर बहता आब (वॉशिंगटन)
9. तन्हा इमारतों का साथ निभाते पेड़ (हांगकांग)
10. छत के नीचे चलता रास्ता (जॉर्जिया)