इस व्यक्ति ने पेंशन के पैसों से भर दिए सड़कों के 1,125 गड्ढ़े
भारत में ऐसे कई लोग हुए हैं जिन्होंने अपने काम से नाम कमाया है। ऐसे ही एक व्यक्ति थे बिहार के दशरथ मांझी जिनकी कहानी पर बॉलीवुड के बेहतरीन निर्देशक केतन मेहता ने फ़िल्म भी बनाई। माझी का कार्य दूसरे कार्यों की अपेक्षा बेहद कठिन था। किसी पहाड़ को अकेले काट कर रास्ता बनाना सही में पागलपन ही है। लोगों को जब उनके बार में पता चला तो वे हैरान रह गए और उनके द्वारा कहे गए शानदार, जबर्दस्त और ज़िंदाबाद शब्द को अपना तकियकलाम बना लिया।
हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मांझी की तरह ही छोटे स्तर पर आम लोगों की मुश्किलों को हल करते आए हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं हैदराबाद में रहने वाले रिटायर्ड रेलवे कर्मचारी गंगाधर तिलक। इन्होंने अपनी पेंशन का इस्तेमाल करके अकेले ही शहर के 1,125 गड्ढ़े भरे हैं।
गंगाधर ने अपने इस मिशन की शुरुआत 2010 में की थी। उनका कहना है कि “वह अपनी Fiat कार से सड़क से गुज़र रहे थे कि अचानक उनकी गाड़ी का पहिया एक गड्ढ़े में पड़ा जिससे कीचड़ उझल कर स्कूल जा रही बच्ची और उसकी मां के कपड़ों पर लग गया। वे इस घटना से काफ़ी शर्मिंदा हुए और गाड़ी से उतर कर उन्होंने बच्ची और उसकी मां से माफ़ी मांगी”।
जान को खतरे में डालने वाले इन गड्ढों को भरने के प्रति वे और गंभीर तब हो गए जब उन्होंने देखा की गड्ढ़े में पहिया चले जाने से एक बाइक सवार का हाथ टूट गया और एक ऑटो बस से टकरा गई। इस घटना में ऑटो चालक के साथ बस में बैठे कई यात्रियों को चोटें आईं थी।
उन्होंने महात्मा गांधी की इस लाइन को अपने जीवन में उतार लिया था, “खुद वो बदलाव बनो, जिसे आप दुनिया में देखना चाहते हो”।
वैसे ये काम तो सरकार का ही था, लेकिन गंगाधर ने सरकार पर उंगुली उठाने के बजाय खुद ही सड़क पर मौजूद गड्ढ़ों को भरना शुरू कर दिया। देश में ऐसे ही लोगों कि ज़रूरत है जो चिल्लाने की जगह खुद कुछ करना शुरू करें। ऐसी महान आदमी (रियल हीरोज)
को गजब दुनिया सलाम करती है