साल 1911 को ब्रिटिश शासन के आलाधिकारियों ने कलकत्ता की जगह दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने की ओर एक कदम उठाया. प्रशासनिक कार्यों के लिए दिल्ली को सही माना गया हालांकि देश पर अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए ये एक रणनीति थी.
बंगालियों के साथ-साथ देशभर में आक्रोश था. मुगल सल्तनत ङगमगा रही थी. इसी बीच सदी के मशहूर और संजीदा लेखक रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कलम से “जन-गण मन अधिनायक” रचा, जिसे बाद में भारत के राष्ट्रगान का दर्जा मिला.
सबसे पहले राष्ट्रगान को इंडियन नेश्नल कांग्रेस के वार्षिकी अधिवेशन के दूसरे दिन रबीन्द्रनाथ टैगोर की भांजी सरला देवी चौधरानी ने अपने स्कूल की कुछ सहेलियों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष बिशन नारायण दर, भूपेंद्र नाथ बोस और अंबिका चरण मजूमदार के समक्ष गाया था.
साल 1919 तक टैगोर इन पंक्तियों पर काम करते रहे. 26 जनवरी 1950 को इसके हिंदी वर्जन को संविधान में राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया.
सबसे पहले राष्ट्रगान को इंडियन नेश्नल कांग्रेस के वार्षिकी अधिवेशन के दूसरे दिन रबीन्द्रनाथ टैगोर की भांजी सरला देवी चौधरानी ने अपने स्कूल की कुछ सहेलियों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष बिशन नारायण दर, भूपेंद्र नाथ बोस और अंबिका चरण मजूमदार के समक्ष गाया था.
साल 1919 तक टैगोर इन पंक्तियों पर काम करते रहे. 26 जनवरी 1950 को इसके हिंदी वर्जन को संविधान में राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया.
हम सब ने राष्ट्रगान का हिंदी वर्जन तो सुना है लेकिन ये बंगाली भाषा में गाया गया वर्जन सच में असली लगता है. गौर करें कि रबीन्द्रनाश टैगोर ने इसे पहले मूल बंगाली भाषा में ही लिखा था. अक्तूबर में आई फ़िल्म राजकाहिनी में राष्ट्रगान के बंगाली वर्जन को फ़िल्माया गया है. इस फ़िल्म के निर्देश्क सरिजीत मुखर्जी थे.