न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन ‘ जी हाँ जब भी कभी किसी को सच्चा प्यार होता हैं तो वो इंसान कभी भी उम्र नहीं देखता प्यार हो ही जाता है| कहते हैं प्यार की कोई सीमा नहीं होती जब भी कभी किसी को सच्चा प्यार होता है तो उसके लिए धर्म, जाति, उम्र, वर्ग, अमीरी-गरीबी कोई मायने नहीं रखती

आये दिन आप देखते होंगे कि कितने लोगों कि प्रेम कहानियां बनती और बिगडती दिखाई देती होंगी कहीं प्यार हांसिल होता है तो कहीं दूर चला जाता है| आज प्यार की असली परिभाषाएं किताबों तक ही सिमटकर रह गई है|ऐसा ही एक किस्सा हम आज आपको बताने जा रहे हैं है यह किस्सा किसी और की ज़िन्दगी का नहीं बल्कि देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी का है, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे|जी हाँ इंदिरा ने फिरोज गांधी से शादी तो ज़रूर की थी और वे उनसे प्यार भी करती थीं लेकिन उनकी जिंदगी में सबसे पहला इंसान कोई और था
ये शक्श उनके पास अपने प्यार का पैगाम लेकर आया था और उस वक़्त इंदिरा गाँधी सिर्फ 16 साल की थीं|आपको बता दें कि 1933 में जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें मशहूर कवि रवींद्रनाथ टैगोर के स्कूल शांति निकेतन में पढ़ने के लिए भेजा था ताकी उनकी बेटी की प्रतिभा में और निखार आ सके| आपको बता दें कि उस वक्त इंदिरा गांधी सिर्फ 16 साल की थी और ये शख्स 34 साल का| मज़े की बात तो ये है कि आशिक कोई और नहीं बल्कि इंदिरा के जर्मन प्रोफेसर थे| इस प्रोफेसर का नाम फ्रैंक ऑबेरदॉर्फ था और प्रोफेसर साहब अक्सर इंदिरा गाँधी को खूबसूरत और अनूठी लड़की कहकर पुकारते थे,
रोजाना प्रोफेसर साहब जब भी इंदिरा को देखते थे तो उनके होश उड़ जाया करते थे|एक दिन जब प्रोफेसर का दिल नहीं माना तो उन्होंने इंदिरा से अपने मन की बात रखते हुए उन्हें प्रोपोज कर दिया| फिर इंदिरा गाँधी ने इस प्रोफेसर को ऐसा जवाब दिया जिसने सबको हिला कर रख दिया |
आपको शोभा नहीं देता ये सब मास्टर साहब| इतना कहने के बाद इंदिरा प्रोफेसर से बहुत नाराज हो गयी|काफी दिन नाराज़ होने के बाद इंदिरा गाँधी प्रोफेसर की भावनाओं को समझते हुए उन्हें दोस्त मानने लगी थी और प्रोफेसर से अपनी हर बात शेयर करती थी| वे दोनों घंटों तक राजनीति, खेल, देश-दुनिया की बातों पर विचार विमर्श करते थे
वहीँ इसी बीच इंदिरा ने प्रोफेसर को एक बात भी साफ-साफ कह दी थी कि ‘मैं एक आम लड़की हूं कोई अनूठी नहीं,बस फर्क बस इतना है कि आसाधारण पुरूष और अनूठी महिला की बेटी हूं’वक्त के साथ इंदिरा आगे बढ़ती गईं और ये कहानी धुंधला गई लेकिन एक किस्से के रूप में, ये जर्मन प्रोफेसर उनकी जिंदगी में हमेशा के लिए जुड़ गए|
आपको बता दें कि 1933 में जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें मशहूर कवि रवींद्रनाथ टैगोर के स्कूल शांति निकेतन में पढ़ने के लिए भेजा था ताकी उनकी बेटी की प्रतिभा में और निखार आ सके| जा इंदिरा इस स्कूल में पढाई करने आई तो उनकी मुलाकात प्रोफेसर फ्रैंक ऑबेरदॉर्फ से हुई |
यह आर्टिकल पपुल जयकर की पुस्तक Indira Gandhi: A Biography is of seminal importance के संदर्भ पर आधारित हैं